के डी सिंह बाबू जन्म शताब्दी वर्ष पर विशेष

भारत के महान हाकी खिलाड़ी पदम श्री  के डी सिंह बाबू के जन्म दिवस 2 फरवरी  पर विशेष  आलेख 

हेमंत चंद्र दुबे बबलू

यह तस्वीर है जिसमे भारत की तीन महान विभूति दिखाई दे रही है मेजर ध्यानचंद और कुंवर दिग्विजय सिंह उर्फ़ के डी सिंह बाबू और पीछे पृष्ठ भूमि में  राष्ट्र पिता महात्मा गांधी जी दिखाई दे रहे है । इस वर्ष संयोग  देखिए की महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में मिली आजादी के 75वर्ष पूरे होकर देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है तो वही ध्यानचंद जी की कर्मभूमि हीरोज मैदान झांसी के 30 सितंबर2021 को 100वर्ष पूरे हुए है और आज   2 फरवरी 2022 से  के  डी सिंह बाबू का जन्म शताब्दी वर्ष प्रारंभ हो रहा है।  ये सुखद प्रसंग हम  देशवासियों के समक्ष उपस्थित हो   रहे  है । भारतीय हांकी और विश्व हांकी  में बाबू साहब  के  नाम से कौन परिचित नहीं होगा  जो बाबू साहब जैसे महान खिलाड़ी  को  जानता पहचानता नहीं होगा ।
 2फरवरी1922 को के डी सिंह बाबू का जन्म उत्तरप्रदेश के बाराबंकी नगर में हुआ था ।। कहा जाता है की  बाबू  साहब तीन वर्ष की उम्र से ही हांकी के दीवाने रहे वे सोते समय भी अपनी हांकी  स्टिक को ही बगल में रखकर सोते थे स्कूल भी जाते थे  तो उनके साथ उनकी हांकी स्टिक हाथो में होती थी याने उठते बैठते खाते पीते सिर्फ और सिर्फ हांकी  ही उनके साथ होती थी  ।बाबू साहब  की आत्मा में सिर्फ और सिर्फ हांकी ही रची   बसी थी ।बाबू साहब का भारतीय हांकी क्षितिज पर अभ्युदय सन 1937में दिल्ली में चल रहे एक  प्रतियोगिता के  दौरान हुआ जब उन्होंने  अपनी  विरोधी टीम के फूल बैक को छकाते हुए बेहतरीन सुंदर गोल कर दिया और वे फुल बैक और कोई नही उस समय के सर्वश्रेष्ठ फुल बैक ओलंपियन  मो हुसैन थे जो 1936भारत की ऐतिहासिक  बर्लिन ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता टीम के सदस्य थे ओर  यही से बाबू साहब के खेल पर  चयनकर्ताओं की नजर पड़ी और उन्हें भारतीय हांकी टीम के श्रीलंका दौरे के लिए चुन लिया गया । 
1947 48में के डी सिंह बाबू ने मेजर ध्यानचंद की कप्तानी में ईस्ट अफ्रीका का सफल दौरा  संपन्न किया।  पूरी दुनिया में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी कैसे अपनी विरासत को संभालती है मेजर ध्यानचंद और के डी सिंह बाबू से बड़ा कोई  उदाहरण नहीं मिल सकता मेजर ध्यानचंद  ईस्ट अफ्रीका के  दौरे में  अपनी ढलती उम्र के 42वे पड़ाव पर थे और के डी सिंह बाबू अपने यौवन के 25 में वर्ष में प्रवेश कर रहे थे और  ध्यानचंद जी ने इसी वर्ष अपने  हांकी  केरियर से सन्यास की घोषणा कर दी वही  उस स्वर्णिम विरासत को  संभालने बाबू  साहब जैसा महान हांकी खिलाड़ी मेजर  ध्यानचंद ने  देश को   दे दिया ।
1948के लंदन ओलिमिपिक्स में के डी सिंह बाबू के खेल कौशल की बदौलत भारत ने फाइनल में इंग्लैंड को, इंग्लैंड की धरती पर  ही पराजित कर ओलंपिक खेलों में चौथे स्वर्ण पदक पर कब्जा जमा लिया और  उस भारतीय तिरंगे को इंग्लैंड की धरती पर लहरा दिया जिसको स्वतंत्रता के पूर्व अंग्रेज भारतीयों के हाथो में भारत में भी देखना पंसद नही करते थे विदेशी धरती तो दूर की बात थी ।साथ ही बाबू साहब ने मेजर ध्यानचंद के उस सपने को भी पूरा कर दिखाया की  जो मेजर ध्यानचंद ने 1936  ओलंपिक में  स्वर्ण पदक जीतने के बाद  बर्लिन ओलंपिक स्टेडियम में देखा था जब पूरी टीम जीत के जश्न में डूबी हुई थी और मेजर ध्यानचंद  अकेले वहा खड़े हुए थे जहा सभी देशों के झंडे लगे हुए थे आंखो  में आंसुओ की धारा निकल रही थी जब उनसे पूछा गया की ध्यानचंद जीत हुई है अफसोस कैसा तब मेजर ध्यानचंद ने फहराते हुए झंडो की इशारा  करते हुए कहा था की  *काश यूनियन जैक की जगह मेरे देश का प्यारा तिरंगा शान से फहरा रहा होता* मेजर ध्यानचंद के उन अफसोस के आंसुओं को  बाबू  साहब और उनकी  भारतीय हांकी टीम ने  अपनी स्वर्णिम जीत से खुशियों के आंसुओं में तब्दील कर दिया  और जब भारतीय हांकी टीम   अपने वतन लौटकर आई तो पूरी गर्मजोशी से स्वागत हुआ बाराबंकी में विजय जुलूस  निकल रहा था बाबू साहब  खुली हुई  जीप पर सवार थे तब  ही  भीड़ में से तेज आवाज आई   *बाबू साहब आपने कमाल कर दिया* जिधर से आवाज आई थी उस ओर  बाबू साहब जीप से कूदकर दौड़ पड़े वह आवाज देने वाला शख्स और कोई  नही बल्कि   बाराबंकी के रिक्शा चालक   भूरेलाल थे जिन्हे बाबू साहब ने उतरकर  गले लगा लिया  भूरेलाल नियमित रूप से  बाबू साहब के खेल को देखने  बाराबंकी के मैदान पर होते थे ।बाबू साहब के व्यक्तित्व की यह सहजता और सरलता थी जो   भूरेलाल जी के साथ  हुई घटना से सप्ष्ट झलकती है।

1952 फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में ओलंपिक खेल आयोजित हुए जिसमें भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी केडी सिंह बाबू के हाथों में थी अपनी गजब की रणनीति और योजना की बदौलत बाबू साहब और उनकी भारतीय हॉकी टीम ने फाइनल मैच में हालैंड को 6 के मुकाबले 1 गोल से  परास्त  करते हुए भारत के लिए लगातार पांचवा ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतकर देश को गौरवान्वित कर दिया । विशेषज्ञ और जानकार हमेशा इस बात को लिखते रहे हैं और कहते रहे हैं कि बाबू साहब ने हमेशा दूसरों को गोल करने के लिए योजना बनाई जिसकी बदौलत  वे गोल करने में सफल हुए । इसी वर्ष उन्हें *हेलमेश ट्राफीके लिए चुना गया जो  महाद्वीप के  सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को प्रदान की जाती है  और यह  सम्मान पाने वाले केडी सिंह बाबू  एकमात्र भारतीय खिलाड़ी रहे हैं ।
सन 1958 में केडी सिंह बाबू को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। एक महान  खिलाड़ी द्वारा दी गई  शाबाशी दूसरे खिलाड़ी के जीवन पर क्या असर करती है इसका अनुपम उदाहरण  वह घटना है जो ओलंपियन अशोक कुमार के प्रारंभिक खेल जीवन में हुई ।बात 1968 बिजनौर ऑल इंडिया हाकी टूर्नामेंट की है अशोक कुमार झांसी रेलवे इंस्टीट्यूट की तरफ से खेल रहे थे और फाइनल में उनकी टीम का मुकाबला सिख लाइट इन्फेंट्री की टीम से हो रहा था और इस फाइनल मैच के मुख्य अतिथि महान ओलंपियन के डी सिंह बाबू थे मध्यांतर में   आवाज लगाई  राइट इन रेलवे इंस्टीट्यूट क्यों ध्यान चंद के लड़के हो जबाव आया  जी अशोक कुमार ।अच्छा खेलते हो पीठ थपथपाते हुए और मेहनत करो और अच्छा खेलोगे बस अशोक कुमार कहते है की  फिर मैंने अपने खेल जीवन में कभी पीछे मुड़कर नही देखा ।यह होता है मिडास टच जिसको छू लिया सोना बन गया ।ये मिडास टच के धनी थे  के डी सिंह बाबू।

सन 1972 में केडी सिंह बाबू को Munich ओलंपिक भारतीय हॉकी टीम का  प्रशिक्षक बनाया गया  जहां भारतीय हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीता किंतु  वे इस सफलता से संतुष्ट नहीं  थे उनका स्पष्ट मानना रहा कि यदि टीम में सेंटर फॉर वर्ड बलवीर सिंह रेलवे और रक्षा पंक्ति में सुरजीत  सिंह को उनके  कहे अनुसार चुन लिया जाता तो भारतीय हॉकी टीम निश्चित ही स्वर्ण पदक लेकर भारत वापस आती किंतु ऐसा हो  नही सका जिसका अफसोस उन्हें हमेशा रहा  । इस ओलंपिक टीम को प्रशिक्षित करते  समय  बाबू साहब के साथ एक दुखद  हादसा भी हुआ  और इस हादसे के बारे में  *भारतीय हांकी टीम के सदस्य ओलंपियन अशोक कुमार उस हादसे को दुखी मन से    बीबीसी लंदन को दिए एक साक्षात्कार में  बताते हुए कहते है  जब उन्हें समाचार मिला कि उनकी माता जी का निधन हो गया है उन्होंने सुबह  अंत्येष्टि का कार्यक्रम संपन्न  किया और  शाम के अभ्यास सेशन में अपने दुख को भुलाते हुए  हमे हांकी की बारीकियो  को ऐसा बतला रहे थे जैसे सुबह उनके साथ कुछ घटित ही नहीं हुआ हो* *वे बतलाते है बाबू साहब मैदान के अलावा क्लास रूम में टीम को स्कूल में टीचर की  भांति ब्लैक बोर्ड पर मूव समझाया करते थे ।बाबू साहब महान व्यक्तित्व के धनी रहे है*। 1972 म्यूनिख ओलंपिक में भारत का मैच मेक्सिको जैसी कमजोर टीम के साथ  हो रहा था और भारत की टीम आशा के  अनुरूप कुछ अच्छा नही कर रही थी ।मध्यांतर में कोच के डी सिंह बाबू ने अशोक कुमार को डांटते हुए कहा की  क्या खेल रहे हो  ये कोई खेल है अशोक कुमार ने कहा बाबू साहब मैं तो अपना खेल खेल रहा हूं लगभग लगभग चिल्लाते हुए डांटते हुए मेरे से बहस करते हो अशोक कुमार की आंखों से आंसू निकल पड़े जो मैच के दौरान भी थमने का नाम नहीं ले रहे थे टीम के सेंटर हाफ अनुभवी दुनिया के महान खिलाड़ी अजीत पाल सिंह ने जेब से रुमाल निकाला और कहा आंसू पोंछ लो और अपना खेल खेलो बस थोड़ी देर बाद बहुत खूबसूरत नयनाभिराम गोल  अशोक कुमार की स्टिक से निकला  मैच भारत जीत चुका था बाबू साहब ने अशोक कुमार को  बुलाकर  जर्मनी मुद्रा के 25 मार्क  देते हुए कहा बहुत सुंदर गोल किया जाओ   ये पैसे से अपने पिता के लिए एक टाई खरीद लेना ऐसा  था बाबू  साहब का गुस्सा और प्यार पल में नाराज और पल  में शाबाशी ।अशोक कुमार कहते है मेरे और मेरे जैसे  अनेकों खिलाड़ीयो के   जीवन में बाबू साहब का  सानिध्य मिला जिसको पाकर  हम खिलाड़ी अपने को  धन्य समझते है। बाबू साहब ने खेल प्रशासक के पद पर रहते हुए भारत में स्पोर्ट्स हॉस्टल के कल्चर को विकसित किया जिसकी बदौलत उत्तरप्रदेश ने भारत को एक से बढ़कर हाकी खिलाड़ी दिए । मो शाहिद, सैयद अली ,सुजीत कुमार ये सभी  खिलाड़ी यूपी स्पोर्ट्स हॉस्टल की देन है जिसको बनाने वाले के डी सिंह बाबू थे।

बाबू साहब की  जन्म शताब्दी     2फरवरी 2022 से  प्रारंभ  हो रही  है तो हम सभी का नैतिक कर्तव्य हो जाता है की  बाबू साहब की  कीर्ति और  गरिमा के अनुसार पूरे देश में कार्यक्रमों की रूपरेखा बने  । के डी सिंह बाबू जन्म शताब्दी  समिति का गठन  देश में हांकी इंडिया अथवा केंद्र सरकार ,राज्य सरकार या फिर पूर्व  ओलंपियन हांकी  खिलाड़ी मिलकर करे, ताकि बाबू साहब को याद किया जा सके और  उनकी  यादों को ताजा कर हम आने वाली पीढ़ी को उनके व्यक्तित्व से परिचित करा सकें और यह संयोग है कि इस वर्ष आजादी के 75 वर्ष के आयोजन भी देश में चल रहे हैं जो 15अगस्त 2022तक चलेंगे  साथ  बाबू साहब मेजर ध्यानचंद की विरासत के  वे  सच्चे ध्वजवाहक  रहे है   और मेजर ध्यानचंद की  कर्मभूभी हीरोज मैदान झांसी  के 100वर्ष भी इसी वर्ष पूरे  हो रहे है। भारत ने   ओलिंपिक में 41वर्षो के पश्चात कांस्य पदक हासिल  कर इतिहास भी  रच दिया है  ऐसे सारे सुखद  संयोगो के साथ यदि  बाबू  साहब को याद करते हुए उनकी जन्म शताब्दी मनाई जाए तो हम उनके प्रति  अपने सच्चे  श्रद्धा सुमन अर्पित कर पाएंगे।

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