50% से अधिक स्कूलों में खेल के मैदान नहीं है,

सिर्फ बिहार ही नहीं पूरे देश के सरकारी स्कूलों के यही हालात है ।

एनसीईआरटी की कई रिपोर्ट्स यह बताती हैं कि देश के कुल 13 लाख से अधिक स्कूलों में से 50% से अधिक स्कूलों में खेल के मैदान नहीं है, देश में खेलों के विकास के लिए जो सबसे पहली चीज होनी चाहिए वह है खेल के मैदान, लेकिन हमारा दुर्भाग्य है की बच्चों के लिए खेल के मैदान स्कूली स्तर पर ही उपलब्ध नहीं है दूसरी बड़ी वजह शारीरिक शिक्षकों की उपलब्धता भी नहीं होना है देश के करीब करीब सभी राज्यों में विगत 10 वर्षों से शारीरिक शिक्षकों की कोई भी नियमित भर्ती नहीं हुई है एक तरफ तो सरकारें देश में खेल कूद के प्रोत्साहन के लिए कई नई स्कीम चला रही हैं नई-नई घोषणाएं हो रही है लेकिन खेल के मैदान और शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों के बिना यह सभी स्कीम और घोषणाएं किसी भी काम की साबित नहीं रही हैं

जहां चाइना जैसा देश खेलों में 20 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश कर रहा है वहीं हमारे देश के 50% से अधिक स्कूलों में ना तो खेल कूद के मैदान हैं और ना ही खेलकूद के शिक्षक हैं, मेरा हमेशा से मानना है देश मे खेल के कल्चर को बढ़ाने के लिए शारीरिक शिक्षक एक अहम भूमिका निभा सकता है लेकिन हमारे यहां तो  खेल का मतलब सिर्फ मेडल जीतना है ।
खेलकूद को सिर्फ और सिर्फ मेडल जीतने से ही नहीं जोड़ा जाना चाहिए यह व्यक्ति के संपूर्ण विकास का एक अभिन्न अंग होता है यदि हम देश में खेलों के विकास और उसके कल्चर को डवलप करेंगे तो स्वत: ही देश का स्वास्थ्य पर होने वाला खर्चा कम हो जाएगा लेकिन न तो पिछली सरकारों और ना ही वर्तमान सरकारों खासकर प्रदेशों में इस विषय को महत्वता देते हैं आज जरूरत इस बात की है खेलकूद को जीवन का एक अभिन्न अंग बनाया जाए और स्कूली स्तर पर खेलों का आधारभूत ढांचा बनाया जाए, साथ ही साथ सभी स्कूलों में शारीरिक शिक्षक और खेलकूद के कोचों की नियुक्ति की जाए और जब तक यह नहीं होगा तब तक हम सब लोग सिर्फ और सिर्फ एक-दो ओलंपिक मेडल से ही संतुष्ट होते रहेंगे कुछ दिनों में ही ओलंपिक गेम्स आने वाले हैं देखना तब पूरे देश में, पूरे मीडिया में सिर्फ और सिर्फ देश में खिलाड़ी क्यों नहीं बनते हैं इन पर चर्चाएं होगी कमेटी बनेगी, रिपोर्ट आएगी, ओलंपिक खत्म होने के बाद हमारे पास दो-चार मेडल आएंगे भी और उसके बाद हम फिर 4 साल का इंतजार करेंगे लेकिन हकीकत यही है कि हम लोग स्कूली स्तर पर खेल कूद का आधारभूत ढांचा और खेल शिक्षकों की नियुक्ति नहीं करेंगे ।
लेकिन अब वक्त है बदलाव का हम सबको अपनी सोच बदलनी होगी खेलों को जीवन का एक अभिन्न अंग मानते हुए खेलों को सिर्फ मेडल से ना जोड़ते हुए अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत होते हुए देश में खेलों के विकास के लिए शारीरिक शिक्षा को उसका स्थान देना ही होगा ।

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