भारतीय खेल दर्शन मुख्यता, डॉ सुनील यादव
भारतीय खेल दर्शन द्वारा खेलों में आत्म निर्भर भारत का निर्माण , जिससे आने वाले समय में स्वदेशी खेलों का अपना एक अलग ही वर्चस्व भारत में नजर आएगा। फिजिकज़ एजुकेरान फाऊंडेशन ऑफ इण्डिया के उतराखण्ड चैप्टर और शारीरिक शिक्षा विभाग पतंजलि विश्वविद्यालय़ हरिद्वार व कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनिताल के संयुक्त तत्वाधाम में स्वदेशी खेल पर राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया । इस वेबीनार में ड्रॉप रोबॉल एवं भारतीय क्रीड़ा विकास संगठन के संस्थापक श्री ईश्वर सिहं आचार्य ने अपने व्याख्यान में स्वदेशी खेलों के विकास हेतु नारा देते हुए कहा कि भारतीय खेल दर्शन द्वारा स्वदेशी खेलों का भविष्य जल्दी स्वर्ण़ रुप में उभर कर भारत को संपूर्ण विश्व में विख्यात करेगा। स्वदेशी खेलों के वास्तविक स्वरूप को जानने के लिए प्राचीनकाल से लेकर वर्तमानकाल तक स्वदेशी खेल व भारतीय मिश्रित खेलों का अध्ययन करना होगा। आचार्य ने बताया की भारतीय खेल दर्शन मुख्यतः तत्व, ज्ञान और विज्ञान अर्थात् शारीरिक गतिविधियां , कुछ नियम व प्रतियोगिता के स्वरूप में दिखाई देता है। खेल जगत में पहली बार भारतीय खेल दर्शन के नाम को परिभाषित किया है। स्वदेशी खेलों में जहां एक ओर प्रतिस्पर्धा तो है ही साथ में ही जीवन के महत्वपूर्ण संदेश भी छिपे है। इस प्रकार स्वदेशी खेलों के द्वारा स्वस्थ भारत के निर्माण की पहल होगी । भारतीय खेल दर्शन के माध्यम से ही स्वदेशी खेलों के विकास हेतु इस मुहिम को आगे बढाने. का बीड़ा उठाया है। जिस के द्वारा स्वदेशी खेल भारत में ही नही विश्व भर में एक विशेष पहचान बना पाने में समर्थ होगा। उन्होने रामायण व महाभारत काल में खेले जाने वाले खेलों पर भी चर्चा की औऱ बताया की महाभारत के समय में गेंद यानिके बॉल के साथ खेल खेले जाते थे। भारत बॉल के खेलों का जनक है । भारत में अधिकतर खेल मनोरंजन ,शारीरिका उन्नति व आत्मरक्षा के लिए खेले जाते थे वर्तमान में अधिकतर खेल के रुप में खेले जा रहे है।इस की जानकारी डा. सुनिल यादव ने दी ।